मेरा बचपन मेरी मम्मा की नज़र से...

Tuesday, October 26, 2010

यारों, मैं इण्डिया चली ----------------अनुष्का


१७ नवम्बर २००७ .....निवार्क एयरपोर्ट से आज शाम हम मुंबई के लिए उड़ान भरने वाले है . मैं बहुत ख़ुशी ख़ुशी ममा के  साथ तैयार हो कर बाहर निकली .....मुझे बाहर घूमना बहुत पसंद है, सर्दी भी अब बड़ चुकी है. पापा हम लोगो के साथ एयरपोर्ट आए. मुझे तो यह पता ही  नहीं था कि पापा हमारे साथ नहीं जारहे इसलिए सेक्योरिटी चेक के बाद ही मैं पापा को खोजने लगी .....प्लेन में एयर प्रेशर के कारण मैं थोड़ा रोई भी लेकिन ममा की सबसे बड़ी उलझन तो यह थी कि अभी ८-१० दिन ही हुए थे जो मैंने घुटने चलना शुरू किया था अब मैं बेसिनेट मैं १८ घंटे कैसे चुप चाप बैठूं !!
मैंने इतनी आफत की, आखिरकार ममा को अपनी सबसे आगे की सिट छोड़ कर सबसे पीछे खुले स्पेस में आना पढ़ा जहाँ मैं मज़े से तफरी कर सकू ...ममा वही ब्लेंकेट बिछा कर बैठ गई . सारे क्रू मेम्बर्स भी आते जाते मेरे साथ खैल रहे थे और पेसेंजर्स भी . जैसे ही हम मुंबई एयरपोर्ट पहुचे सबसे पहले तो गर्मी के कारण मैं घबरा गई फिर घर तक जाने में सड़क पर जो ढचके खाए कि मुझे लगा मैं गिर गई हूँ .....सारे रास्ते मैं रोती रही और ममा, मामा के साथ मिलकर हँस रही थी .
जैसे ही घर पहुंचे बहुत बड़ा सरप्राईस हमारा वेट कर रहा था ......रावटी से माई(नानीजी ) और विपिन मामासाब(छोटे मामा ) भी आए थे हमें रिसीव करने . अब आप सोचते होंगे बड़े मामा, मामा और छोटे मामासाब !! हमारे रतलाम और मालवा की  बोली बड़ी अदब की है . उधर ऐसे ही बोला जाता है तो ममा भी मुझे यू ही सिखाती है लेकिन बड़े मामासाब को तो मेरे मूह से बस मामा सुनना ही पसंद है इसलिए वो मामा ही है :)
माई (नानीजी ) तो मुझे देखते ही रो पड़ी और गोद में लेकर बहुत प्यार किया इधर ममा भी अर्युश को गोद में लेकर ऐसा ही कर रही है मुझे बहुत हैरानी हुई मैं तो सब से मिल कर इतना खुश हूँ ....ममा रो रही है !!
मेरी और अर्युश की यह पहली मुलाकात थी वो मुझसे बस २ महीने छोटा है . हम दोनों की खूब जमी . १ दिन माई, मामा, मामीसाब और प्यारे अर्युश के साथ बहुत मज़े से गुज़ारा. १ दिन का ब्रेक लेकर मेरे चाचू के साथ अगले ही दिन हमने मुम्बई से इंदौर के लिए उड़ान  ली . १ दिन सब से मिलकर अच्छा लगा लेकिन डैडीजी (नानाजी ) से मिलना तो बाकी है . वो नहीं आ सके मुम्बई, उन्हें ऑफिस का काम जो था . ये ऑफिस में इतना काम क्यों होता है सबको !!!



देव दिवाली का दिन था ......दू  दादी भी हमें लेने आए थे . मैंने जैसे ही दादी को देखा तुरंत ममा की गोद से फुदक कर उनके पास चली गई ...दादी बहुत खुश हुई उन्हें लगा में ३ महीनो में उन्हें भूल जाऊँगी. अब उन्हें क्या पता मैंने उन्हें कितना मीस किया ......


दादी ने द्वार पर मेरे स्वागत में सुन्दर सी रंगोली भी बनाई थी और दादू ने घर में बलून लगाए थे .....

चाचू , दादू , दादी और दादी माँ से मिलकर सारा दिन मैं बहुत खुश रही लेकिन रात होते ही रोना शुरू .....शायद पापा की याद आरही है ...... चाचू ने मुझे गोद में लेकर घूम घूम कर सुलाया.

14 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया बेटू...:)

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत अच्छा लगा ये पढ़ कर....लेकिन अनुष्का...कभी भी रोना नहीं...हमेशा ऐसे ही हंसती रहना खिलखिलाती रहना.

God Bless!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बहुत अच्छा लगा...
बस इसी तरह...’प्यार बांटते चलो’
और सबका आशीर्वाद हासिल करते रहो.

माधव( Madhav) said...

सुंदर वर्णन

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छा लगा ये पढ़ कर

संजय भास्‍कर said...

Dear jaldi aao
i m wait

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर यात्रा वृतांत, आगे क्या हुआ? यह तो शुरूआत ही है ना? प्यार.

रामराम.

Girish Kumar Billore said...

प्रणाम
अब बस सीमा (मेरी छोटी बहना) के इंतज़ार सा इंतज़ार है

Girish Kumar Billore said...

अब बस सीमा (मेरी छोटी बहना) के इंतज़ार सा इंतज़ार है

रावेंद्रकुमार रवि said...

यारों, मैं तो चली इंडिया, हँसते-गाते!
तुम भी मुझसे मिलने आना, हँसते-गाते!
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आओ, तुम्हें खिलाऊँ लड्डू, हँसते-गाते!
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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भारत आने की खुशी झलक रही है ....सुन्दर फोटो हैं .

Divya Narmada said...

बालगीत:

अनुष्का

संजीव 'सलिल'
*
(लोस एंजिल्स अमेरिका से अपनी मम्मी रानी विशाल के साथ ददिहाल-ननिहाल भारत आई नन्हीं अनुष्का के लिए है यह गीत)

लो भारत में आई अनुष्का.
सबके दिल पर छाई अनुष्का.

यह परियों की शहजादी है.
खुशियाँ अनगिन लाई अनुष्का..

है नन्हीं, हौसले बड़े हैं.
कलियों सी मुस्काई अनुष्का..

दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई अनुष्का..

सबसे मिल मम्मी क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई अनुष्का..

सात समंदर दूरी कितनी?
कर फैला मुस्काई अनुष्का..

जो मन भाये वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई अनुष्का..

मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.
हाथ न लेकिन आई अनुष्का..

ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
भरमा मन भरमाई अनुष्का..

*****************************

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भारत आगमन पर
बहुत-बहुत अभिनन्दन!
तभी तो इसकी चर्चा यहाँ भी की है-
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/26.html

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपका स्वागत है।