मेरा बचपन मेरी मम्मा की नज़र से...

Thursday, September 30, 2010

जगमगाता शहर लॉस वेगास ----------------अनुष्का

वेगास में बने एफिल टावर होटल कसीनो से जगमगाता लॉस वेगास का दृश्य 
पिछले कुछ महीनो से पापा बहुत बिज़ी चल रहे थे लेकिन अक्सर विकेंड्स में समय निकल कर हमको किसी ना किसी अच्छी जगह घुमाने ज़रूर लेजाया करते है .....इस वीकेंड पापा को काम से थोड़ी राहत मिली तो २ दिन की छुट्टी लेकर वो हमें एक लम्बी आउटिंग पर लेकर गए ....मम्मी पापा और मैंने एक साथ बहुत अच्छा समय बिताया और नई नई जगह घूमी . ढेर सारी नई चीजें देखने को मिली ५ दिन में हम लोग ४ राज्यों से गुज़रे ....नेवाडा, एरिज़ोना, यूटा और केलिफोर्निया बहुत सारी मस्ती और अलग अलग अनुभव मिले ....मैंने सबसे ज्यादा मज़ा वेगास में किया वहाँ की जगमगाहट  और तरह तरह की बिल्डिंग्स मुझे बहुत लुभा रही थी .
स्ट्रेटोस्फेयर टावर यह लगभग २०० मंजिली इमारत है

१८० मज़िल के ऊपर जाकर निचे सब कुछ छोटा छोटा हो गया है
 

ऊपर थ्रिल राइड्स चलती है 


इस टावर के ऊपर थ्रिल राइड्स चलती है जिनमे बैठ कर लगता है हम इतनी ऊपर से निचे गिर जाएंगे .....मुझे तो देख कर ही डर लगा लेकिन पापा ने इनका भी अनुभव लिया ....तब तक मैने ओब्ज़र्वेशन पॉइंट पर भी धमाल मचाई .

सर्कस सर्कस होटल 
सर्कस सर्कस में सर्कस देखने के के बाद कुछ गेम्स के आनन्द लिए और मेरे लायक छोटी वाली बच्चो कि राइड्स में मैंने भी मज़ा किया आखिर मैं पापा से पीछे कैसे रहूंगी वो भी मस्ती करने में ...

मेरा मेरी गो राउंड युनिकोन

वेगास कि जगमगाती शाम 

सुन्दर सुन्दर बिल्डिंग्स और अच्छे अच्छे शोस 
 रेनफोरेस्ट केफ़े (रेस्टोरेंट) मुझे बहुत पसंद है ....यह अन्दर से बिलकुल रेनफोरेस्ट जंगल की तरह बनाया हुआ रहता है ....जब तक खाना आता है मैं चारों और घूम घूम कर बहुत खैलती हूँ मछलियाँ और तरह तरह के जानवरों के साथ यहाँ की साज सज्जा मुझे बहुत लुभाती है

रेंफोरेस्ट केफ़े

काश ये असली होते 

एम एन एम वर्ल्ड से ढ़ेर सारी चोकलेट्स आई और खाई भी 

यह भी एमएन एम केंडी से ही लिखा है 


शाम को एफिल टावर के ऊपर 

 शाम के समय एफिल टावर कसीनो के ऊपर जाकर चारो तरफ से वेगास का जगमगाहट तो देखते नहीं बनती सारा शहर रौशनी में नहाया लगता है उस पर उचाई से बेलेरो का म्यूज़िकल फाउन्टेन शो .....इतना अच्छा लगा कि मैंने वहाँ से यह फाउन्टेन शो २ बार देखा ....बहुत ही अच्छा अनुभव रहा.

Thursday, September 23, 2010

मस्ती का दौर शुरू -----------------अनुष्का


दादू दादी के इण्डिया चले जाने के बाद मम्मा थोड़ी अकेली पढ़ गई थी . मेरा ध्यान रख कर घर का भी काम देखना लेकिन विशाल चाचू (पापा के मित्र) और पापा, मम्मा की बहुत मदद कर दिया करते थे इसलिए उन्हें थोड़ी आसानी रहती थी . चाचू रोज़ ऑफिस से आकर मुझे बहार घुमाने लेजाते पापा और चाचू मिलकर मुझे बहुत हँसाते और बड़ी मस्ती करते ....

पापा और चाचू की बातों पर एक जोर का ठहाका :)
मम्मी तो मुझे अक्सर पालने में लेटा कर अपना काम करती थी और कुछ गुनगुनाया करती फिर थोड़ी थोड़ी देर में आकर मुझसे बातें करने लगती. मुझसे बातें किये बिना उनका तो मन ही नहीं लगता वैसे भी बात करना तो मुझे बहुत अच्छा लगता ही है ...

झूल मैना झूल तेरी टोपी में फूल.....यही गाती थी मम्मा
मम्मा की फ्रेंड्स भी काफी मदद कर दिया करती थी . अक्सर दोपहर में मम्मा की मदद को घर आजाती तो उनके साथ मेरे छोटे छोटे फ्रेंड्स भी होते जिन्हें देख कर में भी बहुत खुश हो जाती और जोर जोर से हाथ पैर मरने लगती...अगर मम्मा मुझे निचे लेटा देती तो मैं रोल रोल होकर पुरे घर में घूम लिया करती ....

टमी टाइम भी होजाता और घर का मुआयना भी
 अभी मैं ३ महीने की ही थी कि मेरी फर्स्ट एंड फास्ट फ्रेंड "स्वरा" का पहला जन्मदिन आया ...मौसी और सिया स्वरा ने मुझे ख़ास तौर पर जन्मदिन की पार्टी में बुलाया. मैं भी छोटी थी तो क्या हुआ बड़े अच्छे से सज धज कर पार्टी में गई .....

पार्टी में जाने की ख़ुशी है भाई .......और क्या !!


अच्छी तो लग रही हूँ ....न
 जब मैं पार्टी में गई तो मुझे देख सब बहुत खुश हो गए और मौसी ने भी मुझे बहुत प्यार किया यह मेरी पहली पार्टी थी . इतने सारे लोगो के बिच नई नई चीजों को मैं बहुत गौर से देख रही थी ...मम्मा तो डर रही थी कि शायद मैं वहाँ रोने लगू लेकिन इसके विपरीत मैने तो इन सब का बहुत आनन्द लिया ...
मम्मी की फ्रेंड सुमेधा मौसी मुझे प्यार करते हुए ...



 मैं तो  वहाँ आए सभी मेहमानों को गौर से देख कर उनसे पहचान बना रही थी . बारी बारी सबने मुझे अपनी गोद में लेकर ढ़ेर सारा प्यार किया नए नए लोगों और नई नई चीजों को देखने में मुझे आनन्द आरहा था  आखिर अब मेरा मस्ती का दौर जो शुरू हो गया था

Tuesday, September 21, 2010

ओ चाचू , आल ईज़ वेल ......................अनुष्का

आपको पता है इन दिनों इण्डिया से मेरे चाचू (प्रणव जोशी ) यहाँ यू.एस. आए हुए है ......मैं पुरे २ साल के बाद अपने चाचू से मिली तो मुझे बहुत अच्छा लगा । हालाँकि चाचू यहाँ अपने ऑफिस के काम से ही आए है लेकिन वीकेंड में तो वो मुझे ही समय देते है । हम दोनों मिल कर ढ़ेर सारी मस्ती भी करते है और मैं उन्हें नई नई जगह घुमाने भी लेजाती हूँ । यानि आप समझ ही गाए होंगे चाचू के आने पर तो आपना आल ईज़ वेल ही होगया है । आप भी देखिये इन फोटोस में .....


मैं और चाचू ...पीछे हालीवुड हील है

चाचू और मैं लॉस एंजेलिस कोडेक थिएटर की एंट्रेंस पर हैं


हमारी मस्ती तो हमेशा चलती रहती है ऐसे ही ....

चाचू मेरी हर ईच्छा पूरी करते है .....देखिये पोनी राईड भी दिलाई

और मैं खुश होकर चाचू को "आल ईज़ वेल " सॉंग सुनती हूँ....


हम दोनों ने पेटिंग ज़ू में एनिमल्स को फीड भी किया था

हम लोग साथ में बीच पर सेंड में भी खेले


तो कहिये..... है न ?? चाचू के साथ आल ईज़ वेल :)

पंख होते तो .....................अनुष्का

अब मैं दो महीने की हो चुकी थी ....दादू दादी के साथ मेरे दो महीने कैसे बीते ना मुझे पता चला न उन्हें । वैसे तो दादू दादी को ५-६ महीनो के लिए रुकना ही था लेकिन उधर इण्डिया में मेरी दादी माँ की तबियत ठीक नहीं रहने लगी इसीलिए दादू दादी ने ३ महीने के बाद ही जाना तय कर लिया । उन्होंने तो यही सोचा था की कुछ और महीनो में मेरा पासपोर्ट भी आजाएगा फिर वो मम्मा और मुझे साथ ही लेकर जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ । मेरा तो पासपोर्ट अभी बन कर आया ही नहीं था और उनके जाने का दिन आगया ....सब लोग बहुत उदास थे और मैं भी
दादी
की गोद की आदत भी लग गई थी मुझे तो और दादी मुझे जो हमेशा लोरी सुनाती थी "मेरा बुलबुल सो रहा है " उसे तो मैं बहुत ही ज्यादा मीस करने वाली थी .......


तब ऐसा ही लगा की यह अगर डाक्यूमेंट्स का चक्कर न होता तो अच्छा ही होता या फिर मेरे पंख ही होते तो उड़ कर उनके साथ चली जाती .......
एयरपोर्ट
के लिए निकालने से पहले की उनके साथ मेरी यह तस्वीर ...

Monday, September 20, 2010

मेरी पहली आउटिंग -------------------------अनुष्का

मेरे जन्म से अब तक की जो स्मृतियाँ चल रही है उसी कड़ी में आगे आज आपको एक नया प्रसंग बताती हूँ .....जलवा पूजन के बाद तो हम सब लोग बहार घूमने के लिए स्वतंत्र हो गए थे .....अगले ही दिन पापा ने योजना बनाई हम सब को लेकर न्यू जर्सी के एक बहुत सुन्दर बीच "सी साइड हाईट्स" लेकर जाने की .......गर्मियों के मौसम में दादू दादी को बीच के आनन्द भी तो दिलाने थे न । यहाँ बीच पर समुद्र के किनारे पापा ने पानी में बड़ी मस्ती की लेकिन मैंने मम्मी के साथ सेंड में सनबाथ के मज़े लिए ......आखिर यह मेरा पहला सनबाथ जो था :)


फिर यहाँ की सुन्दर बोर्डवाक पर लगी बड़ी बड़ी राइड्स पर दादू दादी को बिठाया .....



इस अनुभव को वो दोनों हमेशा याद रखते है ......दादी ने तो एक दो राइड्स और ली उन्हें बहुत अच्छा लगा ... उसके बाद वही बोर्डवाक पर दादी एक गेम की ट्राई ही कर रही थी की अचानक गोली की आवाज़ से खुद ही डर गई
सब लोग दादी खुद भी ठहाके लगा कर हँसी......सब लोग एक साथ बहुत खुश थे ।
इन सबके बिच मेरी मम्मा तो बस मुझे प्यार करने मैं ही मशगुल थी और मैं भी .....मम्मा को


सेन डिएगो में की मौज-मस्ती ...................अनुष्का




इस वीकेंड मैं मम्मी-पापा के साथ सेन डिएगो सिटी गई थी .......सी वर्ल्ड में बहुत मौज मस्ती की
पेंग्विन्स को देख कर मुझे बहुत मज़ा आया


उसके बाद मैंने व्हेल मछली शामू का शो देख ......इतनी बड़ी मछली देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ


उसके बाद तो जैसे आनंद की सीमा ही न रही मैंने देखा डोल्फिन मछली का शो .....जो मुझे बहुत पसंद आया


फिर ढेर सारी सुंदर सुन्दर कई तरह की रंग बी रंगी मछलियाँ देखने के बाद मैंने की बहुत सारी मस्ती ...


यानि फुल फेन डे :)


Thursday, September 16, 2010

मछली जल की रानी है { मेरी हिंदी अंग्रेज़ी कवितायेँ }

इस ब्लॉग पर मेरे जन्म से लेकर अब तक का मेरा सुहाना सफ़र जो चल रहा है उसी के बिच बिच में कभी कभी मैं आपको अपनी अपडेट्स भी बताती रहूंगी ....ताकि आप सभी मेरे अभी की प्रोग्रेस भी जान सके ।
अब आपको एक अच्छी बात बताऊँ..... मुझे ना मम्मी ने बहुत अच्छी अच्छी हिंदी और अंग्रेजी की कुछ कवितायेँ सिखाई है, जिन्हें मैं बहुत शौक से गाया करती हूँ । उनमे से कुछ आज आपको भी सुनती हूँ देखिये ....


आगया जलवा और सूरज पूजन का दिन --------------अनुष्का

जैसे जैसे मैं बड़ी हो रही थी सबको अच्छे से पहचानने भी लगी, अब तो मैं सबकी बातों में भी शिरकत करती....हूँ हूँ कर कर के । जब सभी लोग मुझसे बहुत सारी बातें करते तो मुझे भी बड़ा मज़ा आता ।


एक दिन दादू दादी ने कहा आज अनुष्का ४० दिन की हो गई है । इण्डिया से दादी माँ (पापा की दादी ) ने कहा है कि आज जलवा और सूरज पूजन करना है । दरसल दादी तो जब में १३ दिन की हुई थी तब ही यह पूजन रखना चाहते थे लेकिन मम्मा के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो पा रहा था इसीलिए तब नहीं की ...दादी अक्सर पापा को कहती कि ये सिर्फ मेरा ही जन्म नहीं था । मम्मा का भी दूसरा जन्म था इसीलिए पुराने ज़माने मैं बुज़ुर्गों ने इस पूजन का रिवाज़ बनाया ताकि बच्चे के जन्म के बाद माँ को स्वास्थय लाभ लेने का सही समय मिल सके । इस पूजन के बाद ही मम्मा अब रसोई में काम भी करेगी और बहार आना जाना भी शुरू हो जाएगा ....आखिर अब मुझे भी तो बहार घूमना है न ।
जलवा
पूजन में वैसे तो बाकायदा कुँवें पर जाकर जल पूजन किया जाता है पर यहाँ तो मम्मा ने जल से भरे कलश की ही पूजन की और सूर्य देव का दर्शन पूजन किया .....कहते है माँ यशोदा ने भी कृष्ण जन्म के बाद यह पूजन किया था । इसी दिन बच्चे का पालना भी सजाते है । यहाँ तो दादू दादी ऐसा न कर सके पर जब में इंदौर गई तो उन्होंने मेरे लिए पालना डाला था और उधर रावटी में डैडीजी (नानाजी ) ने भी ...


मैंने भी सुन्दर नए कपड़े पहने और सबने दादी के हाथों बने स्वादिष्ट पकवान खाए लेकिन मैंने नहीं ......मैं तो अभी छोटी हूँ न कुछ खा नहीं सकती ।


एक और मजेदार बात यह हुई कि दादू ने मेरी जन्मकुंडली बना कर मेरा जन्म नाम मीनाक्षी रखा और बताया कि मैं बड़ी होकर गवर्नर बनूगी ...उन्हें कुंडली देखना अच्छा लगता है ।





वो अक्सर खाली समय में मम्मा-पापा और चाचू कि कुंडली देख कर मज़ेदार बातें बताया करते ...इधर मुझे तो बड़े होने में बहुत मज़ा आरहा है


चित्रों में पापा के साथ दिखाई देने वाले चाचू पापा के परम मित्र है .....उन दिनों ये और पापा एक साथ एक ही कंपनी में एक ही प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे । चाचू का अपना यहाँ कोई ना था तो वो हमारे ही साथ रहते थे । वो भी मुझे बहुत बहुत प्यार करते है ....एक और मज़े की बात ये है कि इनका भी नाम विशाल है जो मेरे पापा का नाम है । अब तो चाची आगई है ....वो भी मुझे चाचू की तरह बहुत प्यार करती है । उनसे फिर कभी मिलाऊँगी ....